मुबारक है कातिल,
कि अपने ज़ज्बात को अदा करने की
कुदरत रखते है ।
मुबारक है चोर ,
कि अपना माल वापिस हासिल करने की
कोशिश करते है।
मुबारक है तवायफे
कि वे बीवियां नही है,
जिनके जिस्म हर रात
अपने शौहर से झूठ बोलते है।
मुबारक है बूचड़खाने ,
जिनमे यतीम पलते है।
आरजुमंद उस योमे -बहार के ,
जिस दिन वो जिबह किए जायेंगे।
मुबारक है अहमक ,
जो हर मुल्क में
खुदकुशी को वोट देते है।
रविवार, 9 अगस्त 2009
गुरुवार, 28 मई 2009
कह गया........
हर कदम पर आग है, "चलाना संभल कर" कह गया,
जनवरी के कान में घायल दिसम्बर कह गया।
क्या "उसूलो" की हकीकत है हमारे दौर में ,
फर्श पर दीवार से उतरा केलेंडर कह गया.
पीढियाँ पाले रही जिसकी "बुलंदी" का भरम,
उस महल की असलियत उखडा पलस्तर कह गया।
"रूप" हो या "धुप" ,हर दम एक से रहते नही ,
चाँद ने गल कर कहा,सूरज फिसल कर कह गया।
"सर्द" रिश्ते जिंदगी की आंच सह सकते नही,
धुप में एक बर्फ का टुकडा पिघल कर कह गया।
है न ज्यादा" हारना" भी "जीतने" से कुछ यहाँ,
ये हकीकत कब्र में लेटा सिकंदर कह गया।
सोचता था मै की मुझमे "वो" समाया किस तरह,
बूँद बन कर आँख से छलका समंदर कह गया।
: कुंवर बेचैन
जनवरी के कान में घायल दिसम्बर कह गया।
क्या "उसूलो" की हकीकत है हमारे दौर में ,
फर्श पर दीवार से उतरा केलेंडर कह गया.
पीढियाँ पाले रही जिसकी "बुलंदी" का भरम,
उस महल की असलियत उखडा पलस्तर कह गया।
"रूप" हो या "धुप" ,हर दम एक से रहते नही ,
चाँद ने गल कर कहा,सूरज फिसल कर कह गया।
"सर्द" रिश्ते जिंदगी की आंच सह सकते नही,
धुप में एक बर्फ का टुकडा पिघल कर कह गया।
है न ज्यादा" हारना" भी "जीतने" से कुछ यहाँ,
ये हकीकत कब्र में लेटा सिकंदर कह गया।
सोचता था मै की मुझमे "वो" समाया किस तरह,
बूँद बन कर आँख से छलका समंदर कह गया।
: कुंवर बेचैन
रविवार, 24 मई 2009
Maut
मौत ,
तू एक कविता है।
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको।
डूबती नब्जो में जब दर्द को नींद आने लगे ,
जर्द सा चेहरा लिए चाँद उफक तक पहुंचे।
दिन अभी पानी में हो
और रात किनारे के करीब ,
न अँधेरा
न उजाला
न आधी रात न दिन ।
जिस्म जब ख़त्म हो और
रूह को जब साँस आए।
मुझसे एक कविता का वादा है ,
मिलेगी मुझको।
मौत
तू एक कविता है।
: आनंद (हृषिकेश मुखर्जी)
तू एक कविता है।
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको।
डूबती नब्जो में जब दर्द को नींद आने लगे ,
जर्द सा चेहरा लिए चाँद उफक तक पहुंचे।
दिन अभी पानी में हो
और रात किनारे के करीब ,
न अँधेरा
न उजाला
न आधी रात न दिन ।
जिस्म जब ख़त्म हो और
रूह को जब साँस आए।
मुझसे एक कविता का वादा है ,
मिलेगी मुझको।
मौत
तू एक कविता है।
: आनंद (हृषिकेश मुखर्जी)
शनिवार, 23 मई 2009
swagatam
इन्टरनेट की अनंत दुनिया में प्रवेश करते हुए आज स्वयं को अत्यन्त प्रसन्न अनुभव कर रहा हूँ। विश्वास है , आप सभी का साथ अत्यन्त आनंद दायक होगा ।
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