हर कदम पर आग है, "चलाना संभल कर" कह गया,
जनवरी के कान में घायल दिसम्बर कह गया।
क्या "उसूलो" की हकीकत है हमारे दौर में ,
फर्श पर दीवार से उतरा केलेंडर कह गया.
पीढियाँ पाले रही जिसकी "बुलंदी" का भरम,
उस महल की असलियत उखडा पलस्तर कह गया।
"रूप" हो या "धुप" ,हर दम एक से रहते नही ,
चाँद ने गल कर कहा,सूरज फिसल कर कह गया।
"सर्द" रिश्ते जिंदगी की आंच सह सकते नही,
धुप में एक बर्फ का टुकडा पिघल कर कह गया।
है न ज्यादा" हारना" भी "जीतने" से कुछ यहाँ,
ये हकीकत कब्र में लेटा सिकंदर कह गया।
सोचता था मै की मुझमे "वो" समाया किस तरह,
बूँद बन कर आँख से छलका समंदर कह गया।
: कुंवर बेचैन
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